Author name: Sangeeta Rawat

परिस्थिती चाहे कैसी भी हो, खुद पर भरोसा कैसे रखे? इसका एक सजीव उदाहरण हम जानेंगे – 10वीं शताब्दी की कश्मीर की रानी दिद्दा की कहानी।
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🌸 परिस्थिती चाहे कैसी भी हो, खुद पर भरोसा कैसे रखे?

वैसे, आसान नहीं है यह कहना कि मैं आपकी परिस्थिति को समझती हूँ, या यह कहना कि अभी जो आप महसूस कर रही हैं, मैं समझ रही हूँ। क्योंकि हर किसी के अनुभव अलग होते हैं। लेकिन मेरा मानना है कि समस्या कहीं से भी आए, किसी भी परिस्थिति या चीज़ से शुरू हुई हो, किसी के जीवन में – हम उसे तभी समझ सकते हैं जब हमने भी कुछ न कुछ कठिनाई का अनुभव किया हो या महसूस तो किया ही होगा। जब परिस्थिति कठिन हो, तो कैसे खुद पर भरोसा करें और कैसे लड़ें बिना निराश हुए आगे बढ़ें? देखिए, यह जरूरी नहीं कि निराशा न होना ही सशक्त महिला की पहचान हो। सभी कभी न कभी निराश होते हैं। लेकिन फर्क यह है कि कठिन परिस्थितियों में भी खुद पर भरोसा करके, सोच समझ कर आगे बढ़ना ही असली शक्ति है। इसका एक सजीव उदाहरण हम जानेंगे – 10वीं शताब्दी की कश्मीर की रानी दिद्दा की कहानी। 🌱 रानी दिद्दा का बचपन और बड़े होने तक का जीवन:- रानी दिद्दा का जन्म सियालकोट क्षेत्र में हुआ था। बचपन से ही वह साहसी और आत्मविश्वासी थीं। उनका शरीर भले ही कमजोर था, पर मन और हिम्मत हमेशा मजबूत था। उनकी शादी कश्मीर के राजा क्षेमेन्द्रगुप्त से हुई और वह कश्मीर की रानी बनीं। लेकिन उनकी असली जिम्मेदारी शादी के बाद बढ़ी, जैसे हर लड़की की जिम्मेदारी बढ़ती है। 👑 कश्मीर की रानी बनने के बाद सफ़र:- शादी के कुछ वर्षों बाद राजा क्षेमेन्द्रगुप्त का निधन हो गया। उनके बेटे अभिमन्यु को दूसरा राजा बनाया गया, लेकिन उस समय वह बहुत छोटे थे। इसलिए रानी दिद्दा ने स्वयं सारा राज्य संभाला। उनकी राजनीतिक समझ और दूरदर्शिता के कारण उन्हें कश्मीर का वास्तविक शासक माना गया। जब उनका बेटा बड़ा हुआ, तो वह राजा बना, लेकिन रानी दिद्दा ने अपने हाथों में महत्वपूर्ण निर्णयों को बनाए रखा। बाद में रानी के बेटे की मृत्यु के बाद उनके पोते को राजा बनाया गया, लेकिन प्रशासन और शक्ति का वास्तविक नियंत्रण रानी दिद्दा के पास ही था। 🏰 रानी दिद्दा के उपलब्धियां और शासनकाल:- रानी दिद्दा ने ४४ साल तक शासन किया। इन ४४ वर्षों में कश्मीर के लोगों ने समझ लिया कि एक महिला भी रानी की तरह वही सारी जिम्मेदारियां निभा सकती है, जो सामान्यतः केवल पुरुषों की समझी जाती थीं। रानी दिद्दा के शासन में कश्मीर के लोगों ने देखा कि – कश्मीर की आर्थिक स्थिति बेहतर हुई कश्मीर की सुरक्षा मजबूत हुई और प्रशासन सबसे सुदृढ़ बन गया 🌟 उस समय समाज के लिए सीख:- रानी दिद्दा ने साबित किया कि एक महिला भी पूरी जिम्मेदारी संभाल सकती है, जो पहले केवल पुरुषों की समझी जाती थी। उनसे हम यह सीखते हैं:  बुद्धि और समझ से ही शक्ति होती है, केवल शारीरिक बल से नहीं आत्मविश्वास – परिस्थिति कैसी भी हो, स्वयं पर भरोसा करना आवश्यक है। साहस – कठिन परिस्थितियों में अपने निर्णयों पर दृढ़ रहना। एकाग्रता – अपने लक्ष्य और सपनों को कभी नहीं छोड़ना। 💫 इस कहानी का संदेश आज के लिए संदेश:- यह कहानी केवल पढ़ने के लिए नहीं है। अगर आप अपने अंदर देखें, तो आप भी कभी न कभी किसी न किसी कठिन परिस्थिति में थक कर बैठ चुकी होंगी। चाहे वह स्वास्थ्य संबंधी समस्या हो, आर्थिक परिस्थिति हो, या भावनात्मक चुनौती… जीवन में हर तरह की कठिनाई आएगी। लेकिन हार मानकर नहीं बैठना, थोड़ी देर रुककर सोचना कि अब कैसे संभालें, लेकिन कभी छोड़ना नहीं, यही असली शक्ति है। (थोड़ी देर रुककर सोचें कि कैसे संभालें, लेकिन कभी हार न मानें) रानी दिद्दा की परिस्थितियां अलग थीं, लेकिन उन्होंने यह साबित किया कि अगर उद्देश्य सही हो, नेतृत्व सच्चा हो, और डर या असमर्थता को रास्ता न मिले, तो कठिन हालात में भी हम आगे बढ़ सकते हैं। नोट: हर महिला की असली शक्ति उसके दृढ़ मन, साहस और आत्मविश्वास में है।

अमेनोरिया (मासिक धर्म रुकना) किसे कहते हैं
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🌸 अमेनोरिया (मासिक धर्म रुकना) किसे कहते हैं?

हर महिला को एक उम्र के बाद हर महीने रक्तस्राव (पीरियड्स) होता है। मासिक धर्म चक्र सामान्यतः 28 दिन का होता है, लेकिन यह 32 से 35 दिन का भी हो सकता है। यदि पीरियड्स हर बार लगभग एक ही समय पर आते हैं, तो यह स्वास्थ्य के लिए बेहतर होता है। कभी-कभी पीरियड्स में 3 से 4 दिन की देरी होना भी सामान्य माना जाता है और इसमें घबराने की जरूरत नहीं होती। लेकिन अगर पीरियड्स एक बार आने के बाद कई महीनों तक बिल्कुल ही न आएं — जैसे लगातार 3 से 4 महीने तक – तो इसे “अमेनोरिया” कहते हैं, यानी मासिक धर्म का रुक जाना। यह कोई बीमारी नहीं होती, बल्कि शरीर का एक इशारा होता है कि अंदर कुछ ठीक से संतुलित नहीं है। ये हार्मोन की गड़बड़ी भी हो सकती है, या फिर जीवनशैली में कोई ऐसा बदलाव, जो शरीर को प्रभावित कर रहा हो। 🔸 अमेनोरिया के प्रकार 1. प्राथमिक अमेनोरिया जब किसी लड़की को 15 साल की उम्र तक भी पहली बार पीरियड्स न आएँ। संभावित कारण: शरीर का विकास पूरा न होना हार्मोन में गड़बड़ी जन्मजात कोई रचना संबंधी समस्या (जैसे गर्भाशय या अंडाशय से जुड़ी) 2. द्वितीयक अमेनोरिया जब किसी महिला को पहले पीरियड्स हो चुके हों, लेकिन फिर लगातार 3 महीने या उससे अधिक समय तक न आएँ। यह अधिक सामान्य होता है। 🔹 पीरियड्स रुकने के कारण a. जीवनशैली से जुड़े कारण: अचानक वजन कम या ज़्यादा होना बहुत ज़्यादा तनाव लेना बहुत अधिक व्यायाम करना अत्यधिक डाइटिंग या कमज़ोर भोजन b. हार्मोन में असंतुलन: थायरॉइड की समस्या पीसीओएस (PCOS) c. प्राकृतिक कारण: गर्भवती होना रजोनिवृत्ति (जब उम्र के साथ पीरियड्स बंद हो जाते हैं) स्तनपान के समय भी कभी-कभी पीरियड्स नहीं आते d. दवाओं का असर: कुछ विशेष दवाइयाँ (जैसे अवसाद या हार्मोन से जुड़ी दवाएँ) e. शारीरिक रचना से जुड़ी समस्याएँ: अंडाशय, गर्भाशय या फालोपियन ट्यूब में कोई जन्मजात कमी 🔸 यह स्थिति कब सामान्य होती है? जब महिला गर्भवती हो जब महिला स्तनपान करा रही हो जब रजोनिवृत्ति की उम्र आ रही हो (लगभग 45-50 साल के बीच) इन स्थितियों में पीरियड्स न आना सामान्य है। घबराने की ज़रूरत नहीं होती। 🔹 आम लक्षण:- पहले पीरियड्स आएँ और फिर रुक जाएँ चेहरे पर अधिक बाल या मुंहासे (PCOS में) बार-बार सिरदर्द होना (पिट्यूटरी ग्रंथि की गड़बड़ी में) थकावट, चिड़चिड़ापन, मूड में बदलाव वजन का अचानक बढ़ना या घटना 🔸 क्या करें?    कैसे समझें? यदि 15 साल की उम्र तक पीरियड्स शुरू नहीं हुए हैं, या पहले पीरियड्स आ चुके हों लेकिन 3-6 महीने तक रुक गए हों, तो यह संकेत है कि जांच करवाना ज़रूरी है। 🔍 ज़रूरी जाँचें अल्ट्रासाउंड: गर्भाशय और अंडाशय की स्थिति देखने के लिए रक्त परीक्षण: हार्मोन, थायरॉइड और प्रोलैक्टिन की जांच शारीरिक परीक्षण: शरीर के सामान्य विकास को देखने के लिए 🌿 क्या करें – कुछ सरल उपाय ? 1. आयुर्वेदिक / प्राकृतिक जड़ी-बूटियाँ: ✔️ शतावरी और अशोक: हार्मोन संतुलन में मददगार मासिक चक्र को नियमित करने में सहायक ✔️ बीज चिकित्सा (Seed Therapy): 1. तिल:- कम वजन वाली महिलाओं के लिए उपयोगी ठंड लगने वाली प्रकृति में अच्छा ज़्यादा प्रवाह हो तो सेवन सीमित करें 2. अलसी (Flaxseed):- थायरॉइड में सीमित मात्रा में लें पीसीओएस में फायदेमंद 3. मेथी:- पाचन को ठीक करती है इंसुलिन के स्तर को सुधारती है (PCOS में उपयोगी) गर्म प्रकृति की — कुछ लोगों को अम्लता हो सकती है ❗ गर्भावस्था में सेवन न करें 2. व्यायाम और योग:- रोज़ाना हल्का व्यायाम करें योग से तनाव कम होता है अधिक वजन वाली महिलाओं को धीमा लेकिन नियमित व्यायाम करना चाहिए 🧘‍♀️ जीवनशैली में बदलाव रात को पूरी नींद लें तनाव से बचें बहुत ज़्यादा डाइटिंग न करें पौष्टिक भोजन लें: हरी सब्ज़ियाँ, फल, दालें और पर्याप्त पानी 👩‍⚕️ चिकित्सकीय सलाह कब लें? जब पीरियड्स 3 महीने से अधिक समय तक न आएँ जब उम्र 15 के पार हो और अभी तक मासिक धर्म शुरू न हुआ हो जब लक्षण जैसे मुंहासे, अत्यधिक बाल, सिरदर्द या थकान लगातार बनी रहे 🧠 सामाजिक समझ आज भी कई बार पीरियड्स रुकने को केवल गर्भधारण मान लिया जाता है, जो हमेशा सही नहीं होता। समाज की सोच के दबाव में आकर डरने की ज़रूरत नहीं है। यह शरीर का संकेत है कि ध्यान देने की ज़रूरत है, शर्म की बात नहीं। 🔚 निष्कर्ष मासिक धर्म न आना एक संकेत है, समाधान भी है। समझदारी यह है कि शरीर की बात को अनसुना न करें। समय पर जाँच, संयमित जीवनशैली और सही सलाह लेकर महिलाएँ अपने स्वास्थ्य को संतुलित और बेहतर बना सकती हैं। ⚠️ चेतावनी यह जानकारी केवल जागरूकता के लिए है। हर महिला की स्थिति अलग होती है। किसी भी दवा या उपाय को शुरू करने से पहले, योग्य चिकित्सक या आयुर्वेद विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। ✨ अंत में स्वस्थ शरीर और मन से ही सुंदर जीवन बनता है। अपने शरीर से प्रेम करें, उसकी देखभाल करें — यह आपका सबसे सच्चा साथी है। 🌷 मासिक धर्म संबंधी विकार क्या होते हैं?

Dysmenorrhea
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डिसमेनोरिया (कष्टार्तव) क्या है – कारण, लक्षण और प्राकृतिक उपचार।

ऐसा दर्द जो पीरियड के टाइम या ठीक पीरियड से पहले होता है। जैसे पेट के नीचे वाले हिस्से में खिंचाव सा महसूस होना और पीठ का दर्द पैर तक फैलना। कुछ महिलाओं में तो चक्कर और उल्टियाँ भी आने लगती हैं, जो आपकी बॉडी को पीरियड के टाइम तक इतना कमजोर बना देती हैं कि आप शारीरिक और मानसिक रूप से भी थक जाते हैं। जिसे डिसमेनोरिया कहा जाता है डिसमेनोरिया के प्रकार: प्राथमिक डिसमेनोरिया (Primary Dysmenorrhea) – यह एक तरह से डिसमेनोरिया का सामान्य दर्द है। जब पीरियड आते हैं, तब गर्भाशय सिकुड़ने लगता है, जिससे मांसपेशियों के ऊतकों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इसी कारण पीरियड के समय दर्द होता है। यह ज़्यादातर टीनएज में या तब होता है जब पीरियड्स का आना शुरू होते हैं। द्वितीयक डिसमेनोरिया (Secondary Dysmenorrhea) – यह दर्द तब महसूस होता है जब गर्भाशय में फाइब्रॉइड बनने लगते हैं। इसमें नीचे पेट में दर्द या ज़रूरत से ज़्यादा खिंचाव महसूस होता है। यह समस्या ज़्यादातर 25 से 30 साल की उम्र की महिलाओं में होती है। (पीरियड्स या लाइफस्टाइल : पहले की लाइफ या अब की लाइफस्टाइल में अंतर) पीरियड्स एक जैविक प्रक्रिया है जो महिलाओं के शरीर में प्राचीन समय से होती आ रही है। उस समय की महिलाएँ भी मासिक धर्म का दर्द महसूस करती थीं, या कह सकते हैं कि डिसमेनोरिया का दर्द पहले की महिलाओं में भी होता था। लेकिन उनकी लाइफस्टाइल अलग थी। क्योंकि वे खेतों और घर का बहुत सारा शारीरिक काम करती थीं, इसलिए उनका पाचन और शरीर ज़्यादा मज़बूत होता था। जब भी उन्हें पीरियड दर्द होता, तो वे इसे प्राकृतिक नुस्खों से ठीक करती थीं | जैसे :-  हल्दी वाला दूध अजवाइन  +गुड हींग का पानी तिल के तेल की मालिश       आजकल की जेनरेशन में इतना शारीरिक काम नहीं है, क्योंकि अब ज़्यादातर चीज़ों की इतनी सुविधाएँ हो चुकी हैं। अगर कोई महिला घर पर भी है तो वहाँ भी इतनी मशीनरी का इस्तेमाल होता है कि इंसान उन्हें इस्तेमाल करने में ही थक जाता है।  जैसे :- वॉशिंग मशीन आधुनिक सुविधाएँ – मिक्सर, ग्राइंडर, माइक्रोवेव अब तो हर घर में ऑटो, स्कूटी और कार हैं, इसलिए पैदल चलना लगभग बंद हो गया है। 3. पहले की ज़िंदगी में तनाव कम था, क्योंकि सब अपने काम में व्यस्त रहते थे। शारीरिक रूप से थक भी जाते थे तो माहौल शांत मिल जाता था। लेकिन आज की ज़िंदगी में माहौल शांत ही नहीं है, चारों तरफ़ शोर है और आजकल लोग इतने खाली बैठे रहते हैं कि डिप्रेशन में जाने के मामले बढ़ने लगे हैं, जिसकी वजह से डिसमेनोरिया के मामले भी बढ़ने लगे हैं। 4.पहले की महिलाएँ लोगों से मिलती-जुलती थीं, बातचीत होती थी और बाहर के खुले माहौल से जुड़ी रहती थीं। लेकिन आज की महिलाएँ घर के अंदर हैं, किसी से जुड़ाव नहीं है। खासकर टीनएज लड़कियाँ इतनी फ़ोन और सोशल मीडिया में खोई रहती हैं कि वे अंदर से अकेलापन महसूस करने लगी हैं और तनाव लेने लगी हैं। डिसमेनोरिया  (कष्टार्तव) के कारण ;- गैस बनना और बार-बार पेट खराब होना इसके अलावा उल्टियाँ आना या मतली महसूस होना पाचन की समस्या होना गले में कुछ अटका हुआ लगना या जलन होना बार-बार टॉयलेट जाना सिरदर्द होना  कमर के नीचे हिस्से में दर्द होना और फिर वह जांघ तक पहुँच जाना कमजोरी, चक्कर आना या बेहोशी जैसा लगना नींद न आना और हर समय चिड़चिड़ा व्यवहार करना “पीरियड्स के दर्द डिसमेनोरिया (कष्टार्तव) को प्राकृतिक तरीके से कैसे ठीक करें?” ऊपर बताए गए जितने भी कारण हैं, उनमें से अगर आप किसी भी कारण के साथ समस्या का सामना कर रही हैं तो आपको यह समझना ज़रूरी है कि अब आपको देरी नहीं करनी चाहिए। इसके लिए अच्छी डाइट और वर्कआउट दोनों ज़रूरी हैं। लेकिन कई बार पीरियड्स में स्थिति इतनी कमजोर हो जाती है कि इस तरह की समस्या आने पर वर्कआउट करना भी मुश्किल हो जाता है क्योंकि शरीर में कमजोरी बढ़ चुकी होती है। इसलिए आपको सबसे पहले जिस चीज़ पर ध्यान देना है, वह है आपकी डाइट, ताकि आपकी मेडिकल कंडीशन ज़्यादा खराब न हो। प्राकृतिक डाइट जिसे सभी महिलाओं को अपनाना चाहिए :- (पीरियड्स के पहले पाँच दिन की डाइट) सुबह उठते ही 😊- सुबह उठते ही गुनगुना पानी पिएँ। अगर दर्द ज़्यादा है तो गुनगुना पानी पीने के कुछ देर बाद ½ चम्मच अजवाइन, ½ चम्मच कलौंजी और 1 चम्मच गुड़ की चाय पिएँ। नाश्ते (ब्रेकफ़ास्ट) में – मूंग दाल की खिचड़ी या दलिया + 1 चम्मच घी लें। नाश्ते के बाद – 3 से 4 खजूर या 1 चम्मच गुड़ खाएँ।   दोपहर का खाना :- मूंग दाल की खिचड़ी या कोई हल्की सी सब्जी या रोटी  सलाद 1 चम्मच घी   शामको 4 से 5 बजे के बीच :- अदरक, सौंफ, या मुलेठी वाली चाय लेनी है या चीनी की जगह गुड़ का उपयोग करना है  तिल या गुड़ का छोटा सा लड्डू   रात का खाना :- हल्की कोई सी भी सब्जी या रोटी या मूंग दाल की खिचड़ी सोते समय 1 चम्मच शतावरी चूर्ण + गुणगुना दूध      ➕ पीरियड के 5 दिन पूरे होने के बाद, यानि कि 6 दिन से नीचे वाली डाइट फॉलो करें:- उठते ही गुनगुना पानी पीना है रात को भिगोए हुए बादाम के छिलके उतारकर खाने हैं।  अगर पेट में दर्द या गैस हो तो ½ बड़ा हिंग्वाष्टक केश गुनगुने पानी के साथ खायें।   सुबह का खाना:- दलिया, खिचड़ी, मूंग दाल या बेसन का चीला अजवाइन डालकर खाएँ कुछ देर बाद हर्बल चाय बनाएं- सौफ + अदरक + तुलसी   दोपहर का खाना:- जब स्थिति ज्यादा खराब हो तो डाइट में लंच के समय कभी-कभी राजगिरा / ज्वार या बाजरे की रोटी इस्तेमाल करना सही होता है अच्छे परिणाम के लिए। हमेंशा लंच के बाद थोड़ा सा गुड़ खाए   4 से 5 बजे  कभी हर्बल चाय कभी नींबू पानी  कभी तिल या गुड़ का लड्डू जरूर ले   रात का खाना – हल्का खाना :- खिचड़ी, सूप, दाल टालें: तली हुई चीज़ें और फास्ट फ़ूड सोते समय: 1 चम्मच शतावरी गुनगुने दूध के साथ अगर पेट में

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🌿 मासिक धर्म संबंधी विकार क्या होते हैं?

  पीरियड्स हर महिला के शरीर का एक प्राकृतिक हिस्सा है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो गर्भाशय को साफ करती है और प्रजनन स्वास्थ्य (Reproductive Health) को संतुलन में रखती है। सामान्यत: मासिक धर्म 28 दिनों के चक्र में आता है जिसमें 3–5 दिन तक रक्तस्राव होता है। लेकिन जब इस प्रक्रिया में दर्द, अनियमितता या रुकावट आ जाती है तो उसे मासिक धर्म संबंधी विकार (Menstrual Disorder) कहा जाता है। 🔹 हार्मोन और मासिक धर्म का संबंध हर महिला का प्रजनन स्वास्थ्य दो मुख्य हार्मोन पर निर्भर करता है: एस्ट्रोजन (Estrogen) और प्रोजेस्टेरोन (Progesterone)। एस्ट्रोजन – यह शरीर की वृद्धि, आकार और ताकत के लिए ज़िम्मेदार होता है। यह हार्मोन यौवनावस्था (लगभग 12 साल की उम्र) से अधिक बनने लगता है। प्रोजेस्टेरोन – यह गर्भधारण और मासिक धर्म चक्र को नियंत्रित करता है। जब इन हार्मोन का संतुलन बिगड़ता है तो महिलाओं को मासिक धर्म संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 🔹 सामान्य विकार 1. डिसमेनोरिया (Dysmenorrhea)  पीरियड्स में दर्द आज के समय में  डिसमेनोरिया बहुत सामान्य है। पीरियड्स के दौरान या उससे पहले पेट के नीचे, कमर, कूल्हों और जांघों में दर्द या खिंचाव होता है। कारण: हार्मोनल असंतुलन गलत जीवनशैली और खानपान गर्भाशय को सहारा देने वाले लिगामेंट्स की कमजोरी उपाय: संतुलित आहार और नियमित व्यायाम पीरियड्स से पहले या दौरान गुनगुना पानी/हिप बाथ लेना यदि दर्द बहुत ज़्यादा हो तो स्त्री रोग विशेषज्ञ से सलाह लें 2. अमेनोरिया (Amenorrhea)  पीरियड्स का रुकना सामान्य स्थिति में गर्भावस्था के दौरान पीरियड्स रुक जाते हैं। लेकिन यदि बिना गर्भावस्था के कई महीनों तक पीरियड्स न आएं तो यह विकार है। कारण: एनीमिया (रक्त की कमी) तनाव या मानसिक परेशानी गर्भाशय की असामान्य स्थिति हार्मोनल असंतुलन उपाय: सबसे पहले मूल कारण समझें (क्या आप बहुत तनाव ले रही हैं? क्या खानपान ठीक नहीं है?) पौष्टिक आहार लें आवश्यकता पड़ने पर डॉक्टर से परामर्श लें 🔹 मासिक धर्म विकारों के कारण पोषण की कमी (प्रोटीन, विटामिन, आयरन) तनाव और चिंता गलत खानपान (तैलीय, जंक, बेकरी, ज़्यादा चीनी, चाय/कॉफी) व्यायाम की कमी मानसिक असंतुलन 🔹 प्राकृतिक उपचार और आहार सुझाव पीरियड्स के दौरान शरीर को विषाक्तता (toxicity) से मुक्त रखना बहुत ज़रूरी है। केवल दवाइयों पर निर्भर रहने से लंबे समय में साइड इफेक्ट हो सकते हैं। 🌸 पीरियड्स से पहले 5 दिन फलाहार सेब, पपीता, अनार, संतरा, अनानास, खरबूजा यदि वज़न कम है तो फलों के साथ दूध भी ले सकते हैं गाजर का जूस / गन्ने का रस लाभकारी है 🌸 संतुलित आहार दिनचर्या सुबह: गुनगुना पानी + नींबू + शहद नाश्ता: ताजे फल (कमरे के तापमान पर) + दूध दोपहर: उबली सब्ज़ियां (चुकंदर, पत्ता गोभी, गाजर, प्याज़, स्प्राउट्स) शाम: गाजर का रस या गन्ने का रस रात: स्टीम्ड वेजिटेबल सलाद + एक गिलास दूध / एक सेब Avoid : मांसाहार, पैकेज्ड फूड, बेकरी आइटम, तैलीय भोजन, कोल्ड ड्रिंक, मिठाइयाँ, ज़्यादा चाय/कॉफी, बहुत मसालेदार खाना। 🔹 आयुर्वेदिक / घरेलू नुस्खे केले का फूल + दही – प्रोजेस्टेरोन को बढ़ाता है, अत्यधिक रक्तस्राव कम करता है। चुकंदर का रस – दिन में 2–3 बार, आयरन की कमी पूरी करता है। धनिया बीज – ज़्यादा फ्लो में लाभकारी, मिश्री के साथ ले सकते हैं। अदरक – पीरियड्स के दर्द को कम करता है। तिल – ऐंठन और दर्द में राहत देते हैं, पानी के साथ लिया जा सकता है। 🔹 बचाव के उपाय नियमित व्यायाम और योग तनाव प्रबंधन (ध्यान, गहरी सांस लेना) मौसमी फल और सब्जियों के साथ स्वस्थ आहार अधिक सोच-विचार, धूम्रपान और शराब से बचें 🌸 अस्वीकरण (Disclaimer) यह लेख केवल सामान्य जागरूकता और स्वास्थ्य जानकारी के लिए है। यदि आपको लंबे समय से या गंभीर मासिक धर्म की समस्या है, तो कृपया स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लें।

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